Friday, November 2, 2007

बिन आवाज़ का आँसू हो गया !!


आँखों में तू बस गया जबसे

ना जाने क्यूँ

समंदर सारा बह गया--

तेरी प्यास से, जिसने मन का

हर कोना भिगो दिया...

एक बादल क्यों पर

कहीं और जा बरस गया?

बारिशों में भी जो मुझे रीता कर गया,

बस एक अश-आर था जो जुदा हो गया...

उस सावन में भीगा था संग जो,

आज बिन आवाज़ का आँसू हो गया!


मौन रूदन सी बूँदें गिरती हैं इस बारिश को सुनो तुम..

जो गूँजती ह्र्दय में उनका नाम भी ना सुनो तुम..

कहीं बादल के गरजने से उठती हैं आहें

याद फिर आयी हैं

तेरी घुंघरुओं सी वो बातें

वो सावन ना मुझसे भूला गया

झुलाया था जब तुझको झूला

वो आमों के सूने पेड अब मुझे रूलाते हैं...

बस एक अश-आर था जो जुदा हो गया...

उस सावन में भीगा था संग जो,

आज बिन आवाज़ का आँसू हो गया!


अबके सावन ना जाने क्यों छल गया

बूँदों में पिरोया प्रीत का पहला गीत सा

तेरा छूआ हर लफ्ज़ याद मुझे आ गया

भीगे बालों में वो उंगलियाँ फिराना....

आह प्रिय वो तेरे

होठों से छूकर जो बह जाती थीं..

उन बूँदों को निहारना याद मुझे आ गया

बस एक अश-आर था जो जुदा हो गया...

उस सावन में भीगा था संग जो,

आज बिन आवाज़ का आँसू हो गया!

आज बिन आवाज़ का आँसू हो गया!

Wednesday, October 10, 2007

भाई नरेन् के लिए आज कुछ लिखा..


भाई नरेन् ने लिखा था...


जा कर कहीं खो जाऊं मैं ,

नींद आये और सो जाऊं मैं

दुनिया मुझे ढूंढे

मगर मेरा निशाँ कोई ना हो

तो हमने उनके लिए आज कुछ लिखा..

अपना निशान नहीं हॉं ऐसी भी मंशा रखते हैं,

देख उपरवाले तेरी कायनात में ऐसे भी बन्दे बसते हैं!!

लोग कहते हैं जिन्हें काफिर,

हमें तो वो बड़े सयाने लगते हैं

कदम दर कदम दुनिया के लिए

अपनी जान निसार कर जाते हैं!!

Sunday, October 7, 2007

On the occassion of Guru Purnima!


(My Maa~ Dr Rekha Pande)

Today is Guru purnima…Chaatur-maas has begun, Devshayani Ashadhi Ekadashi has just gone by…Gods are taking rest! As per marathi calendars, the Shraawan month starts exactly 15 days after the normal Indian panchaang so our Shraawan is yet to come, it will start around 13th of August.

As I was talking all this casually with my husband today in the morning, a thought came across my mind… “Will my kids also know all this? Will they know what Indian month it is? Will they understand what is the importance of chaatur-maas? Similarly for every rutu in 12 months, there are simple dos and donts which we should follow as per nature and our biological systems…will they follow it?? Will they ever come to know what is like taking huge swings on Jhoola in amraayi as they get to play only in malls in Mumbai? Will they ever know what is a saawan ka mela of devguradiya (a small hillock outside Indore in MP where every year there is a mela in saawan and one gets to see everything…small gimmicks, saadhus, sanperaas, plastic toys,local sweets and what not!)?? Ohhhh there is so much that shold know, they should feel and they should follow…..”

Sitting here in Mumbai, where most of the parents are because of money and carrier, we really miss out on the small and original beauties of living life that are still there in smaller town places. I need to tell my daughters the wonderful things of our culture….I have to make them see and believe it, I have to let them feel it…But here in Mumbai??

As I put a brake on my thoughts and came back to reality, I could feel that how big is my responsibility towards them. A daughter who at the age of 3 and half says she wants to become pilot and the other who says I want to become a teacher, I not only have to give them wings to fly towards their destinations but I also have to see to it that the wings that they are flying with are strong, cultured and full of pride! I have to see to it that as they get tired of flying and want some rest in between, they return back to the nest which gives them warmth and love and care and affection…

Oh God! There is so much to do…Oh Maa, how I remember you today for you also must have passed through same emotions and you also must have done so much…so much that today I also want to do the same for my daughters! Oh Maa, where ever you are today, I salute you…which I could not do when you were still alive! I salute you oh Maa, my biggest Guru, on this day of Guru Purnima!

(I wrote this on the occassion of Guru Purnima for my maa....who is still alive in me, my kids and all those scores of people whom she touched by her sheer beautiful and caring nature!)

Saturday, October 6, 2007

अखरोट के फूलों का गीत!




अखरोट के फूलों का गीत!
दिल चाहता है

तुम्हारे सुंदर गात सुनूँ

नेह में डूबे हुये


भावों में खो जाऊँ


अंत समय तक बस..


इन्ही बोलो को बोलूँ


इन्ही बाँहों में झूलूँ




वो अखरोट के फूल,


जिनके तले बैठ तुमने


लिखे मुझे गीत सलोने


जब अंत समय आये....


प्रिय,


दे सको तो..


वो अखरोट के फूल,


धर देना मेरे मुख में...


तुलसी पानी सा


मुझे पुण्य ज्यूँ मिल जाये!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


अखरोट के फूल- खिलने के बाद !


वो अखरोट के फूल


जो सूखाये थे,


मुझे देने को!


अपने हाथों से..


तुमने एक रोज़ जो तोडे थे..


उन फूलों को मालूम क्या होगा?


ऐसी भी रुत आयेगी...


सिली हवाओं में वह


बर्फ से जम जायेंगे!


यादों के दरख्तों पे..


यादों के दरख्तों पे..


फिर अगले बरस


कुछ फूल खिलेंगे...


शायद


अखरोट पे लेकिन


फिर वैसे,


फूल नहीं आयेंगे!!


अखरोट पे लेकिन फिर वैसे,फूल नहीं आयेंगे!!

Friday, October 5, 2007

उन्माद...


शीतल सी चाँदनी भी

उन्माद भरा ये मन भी

गाती हूँ गीत तेरे ही

ले आज की रात भी

हर्ष इस उर में भी

हर्षित मेरा तन भी

स्वरों ने तेरे बहला दिया

ले आज की रात भी

मृगी सी कातरता-

इस बेला भी

तेरे स्पर्ष से सहमती

ले आज की रात भी!!

वो सुबह कभी तो आयेगी.....



वो सुबह कभी तो आयेगी

मेरे मन के आकाश पर सिंदुरी सहर होगी

हर रंग मुझसे होकर गुजरेगा

हर रंग को भी तो,

शायद...

मेरी??

जरुरत होगी!!

मुझ तक छूते

कुछ जीवन होंगे या

कुछ रिश्तों के --घनेरे जंगल भी होंगे

हर एक उमर झाँकेगी जिसमेंसे

मेरे बौराये जीवन की

सुनो,

सच्ची वो तस्वीर होगी!

और याद तुम्हारी उभरेगी...


आज फिर सागर किनारे डूबेगा सूर्य

और याद तुम्हारी उभरेगी

इस दिल के किनारों पर

इन अंतिम चमकीली किरणों में

शायद तुम्हें दिखायी दे

मेरा अक्स

क्योंकि स्नेह और गर्माहट का

बहुत पुराना रिश्ता है

स्नेहांकित जल ने सदैव ली है

उष्मा सूर्य की..औ

सूर्य की तपिश को

जल से ज्यादा किसने जाना है?

और यही सत्य है हमारे रिश्ते का भी

स्नेह और गर्माहट का

आज फिर सागर किनारे डूबेगा सूर्य

और याद तुम्हारी उभरेगी

इस दिल के किनारों पर..

Wednesday, October 3, 2007

परछाई.....


परछाई.....

जो सिर्फ और सिर्फ मेरी है!

बचपन से जवानी तक

साथ दिया जिसने

हर आँसू हर खार में

काँधा दिया जिसने...

वो परछाई ही तो है!!

साये में कभी धूप

मिलती नहीं है

सच्चाई को झूठ की झालर,

फबती नहीं है

किसी रोज़ कोई हँस के बोला मगर,

हर दिन तो वैसी खुशी

मिलती नहीं है!!

कोई ख्वाब कभी

शायद

सच भी हो जाये

परछाई

मगर

कभी झूठ

होती नहीं है...

बिरहा में

जलसे में,

मन की ताल पे


दिल के सूर पे

जो संग डोलती है...

वो परछाई ही तो है..

जन्म से मौत तलक

जो बिना कुछ माँगे

साथ देती है,

वो परछाई ही तो है..

इस जनम के पुण्यों को

अपने संग जो..

अगले जनम तक लेकर आती है

वो हमारे कर्मों की

परछाई ही तो है!!


ईसीलिये,

परछाई,

प्रिय

है,

वंदनीय

है!!

Friday, September 28, 2007

क्या हुआ फौजी, मेरे दोस्त....(एक फौजी दोस्त की याद में...जो उन दिनों कारगिल-द्रास में हवाई रक्षण में तैनात थे!)




क्या हुआ फौजी,


मेरे दोस्त


अब वो पहले वाली बात ना रही?


या की तुमको हमारी याद ही ना रही?


अक्सर सोचती हूँ और हो जाती हूँ


गुमसुम....




कि


तुम्हारे प्यारे से चेहरे पर कोई झूठ नहीं फबता


और मेरे दिल की किनारों पर सच की झालर लगी है....


हमारे मध्य


शायद,


सिर्फ ये


द्रास की वादियाँ ही टँगी हैं




कि


तुम कैसे हो?


क्या करते हो?


इस दुनिया से अलग-थलग


उन गहरी बर्फानी बैरकों में


सारा दिन निकालते हो......


फिर हर रात भारी-से कश्म-कश को ओढे


नये सवेरे को तलाशते हो?




कि


अपने कदमों की आहट


नहीं सुन पडती जिस दिन,


बहुत परेशान हो जाती हूँ मैं......


सुना है,


तुम्हें तो वहाँ,


उसकी भी इज़ाजत नहीं होती,


कैसे अपने दिनों को तारीख का नाम देकर


बन जाते हो एक नयी तारीख


तुम...




कि


छूता है क्या कभी


किसी के आँचल का मलमली एह्सास?


उँगलियाँ अक्सर,


ढूँढती होंगी कोई मुडी हुइ तस्वीर?


होठों पे एक हंसी आकर,


वही ठहर जाने की जिद करती होगी?




दोस्त,


अक्सर गुमसुम


अपनी शामों में


तुम्हें ढूँढती हूँ...

Tuesday, August 21, 2007

मेहंदी की उम्र ...


मेरी बेटियों ने परसों

अपने नन्हे हाथों में

मेहंदी लगायी थी--

सूरजमुखी से फूल

लाल चट्टाक दिखते थे

खुश्बू से भीने

छोटे हाथों में

मैने एक चाँद सा

गीत धर दिया...

और उनसे कहा-जाओ गाओ!

वे दोनोंचहकती हुयी..

उस गीत को ले

मगन हो गयी..

लेकिन,

मेरी आँखों में सहसा

वो गीत

जवान हो गया!

बेटीयों के हाथों में रची

मेहंदी ने

मेरी ममता की उम्र को

बहुत ही बडा कर दिया!

मौत,तू किसी रोज,एक सहर की तरह आना....




मौत,


तू किसी रोज,


एक सहर की तरह आना....




मेरे जिस्म में अभी जब खून दौडता हो-


साँसों के बह्कने का


कोई अंदेशा ना हो-


मेरे लबों पर


उसके इश्क का जाम हो-


दिल में उसके ही प्यार का दर्द


और आँखों में


उसका ही तस्सवूर हो--


मौत, तू किसी रोज,


अलसायी सुबह सी आना!!




उसके आँगन जब --


नर्गिस खिलें,


आशियाना जब


जिंदगी से चहके...


उस रोज,


किसी रोज,


मौत तू --


चुपके से आना




मौत तू किसी रोज


नयी जिंदगी देने आना!!

(Photograph: Courtesy Ashutosh Soman)