Wednesday, June 17, 2009

उम्र की दहलीज़ पर एक ख्वाब और बुन के देख


उम्र की दहलीज़ पर एक ख्वाब और बुन के देख

रास्ते के मुसाफिर, अब नए शहर की ओर देख


ये रिश्तों के घाव हैं, न भर पायेंगे आसानी से

इक बार और चल, मलहम तो लगा के देख


मैंने वो कंगन नर्मदा में तिरा दिए.......

कहा था जिनके लिए तुमने, एक बार पहन के तो देख


खिलौनों सा तोड़ डाले है मुझे,फिर भी,

मन कहे,तो क्या?इंतज़ार, वही, और देख


मैंने चाहा था जिसे टूट कर कभी, सालों बाद वही--

बेवफा,अब ज़िद करता है..सिर्फ उसी को देख


तेरे इश्क का सदका खुदा से भी बढ़कर माना था

सारी खुदाई ही से लेकिन,अब इश्क हो गया देख!!


उम्र की दहलीज़ पर एक ख्वाब और बुन के देख

रास्ते के मुसाफिर, अब नए शहर की ओर देख

~स्वाति -मृगी ~

१४ जून २००९


Sunday, May 17, 2009

१६ मई २००९......



१६ मई २००९, हमारी लोकसभा चुनावके निर्णयों का अंतिम दौर खुल कर आने वाला था..उसी के उपलक्ष्य में कुछ लिखा गया...

लीजिये साहब, राष्ट्रिय अखाडे का अंतिम दिन भी आ ही पहुँचा! आज सारे विश्व की नज़रें गड़ी हैं इस भारत-भूमि पर..जाने इस लोकतंत्र के लोग सचमुच जाग गये हैं या सोये हुए ही हैं...देखा जाए तो एक तरह से जागो रे या लीड़ इंडिया या वोट फॉर इंडिया जैसे केम्पेंस ने लोगों को इतना जगा दिया की अमूमन देश के हर कोने में पचास प्रतिशत से ऊपर जनता अपना वोट देने ही नहीं गयी...(पाप का भागी क्यूँ बना जाये...शायद इस उद्देश्य से?)..तो जहाँ यु पी ए/एन डी ए/ब स पा/सी पी एम्/अपने अपने भाग्य के बारे में अटकले लगा रही है वहीं छोटी मोटी मछलियां भी बड़ा दाना चुगने की कोशिश में नज़र आ रही हैं!

आज दुष्यंत कुमारजी की एक रचना बड़ी याद आती है...पेश है: (मूल रचना लाल रंग में है, मेरा चबैना(मेरा लिखा कुछ जिसे आप सुबह के चबैने की तरह चाय के संग नोश फरमा सकते हैं!!), नीले में है ...आशा है आपको आनंद आएगा...)

फिर धीरे-धीरे यहाँ का मौसम बदलने लगा है,

वातावरण सो रहा था अब आँखें मलने लगा है

कमल नाथ जी पुराने मित्रों~नवीन पटनायक /दसरी राव आदि से मिलने में लगे हैं...पासवान जी की घर में ए सी में लगी आग के बारे में सोनिया जी ने फुनिया क्या लिया, पासवान जी को अब बी जे पी दिखती ही नहीं है!!...कांग्रेसियों को डी एम् के और अन्ना डी एम् के...दोनों ही साथ चाहिए...वाह रे दुनिया!! और अभी अभी खबर मिली है की उन्हें डी एम के नही चाहिए...बढ़िया है, अन्ना तो पहले ही बी जे पी की ओर रुख किये थे...तो भाई डी एम् के का क्या होगा??? हा हा हो गया न दिमाग गोलम गोल!! आइये, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आपका स्वागत है!

पिछले सफ़र की न पूछो,टूटा हुआ एक रथ है,

जो रुक गया था कहीं पर, फिर साथ चलने लगा है

रथ वाले लोगों की हकीकत जानता है ज़माना भी...क्या करे लेकिन दूसरे वाहनों की लाइफ पर भी तो यक्ष प्रश्न लगे हुए हैं...इसी बात का फायदा ले रथ फिर गतिमान हुआ है इस बार...लेकिन इन बेचारों के लिए एक ही गीत याद आता है मुझे, बहुत देर से दर पे आँखें लगी थी,बड़ी देर कर दी हुजुर आते आते...काश की आप लोगों ने गुजरात को रोल मॉडल बना कर बाकि राज्यों को भी गुलज़ार किया होता...

हमको पता भी नही था, वो आग ठंडी पड़ी थी,

जिस आग पर आज पानी सहसा उबलने लगा है

जिन्हें हर कोई भिगो भिगो के जूते मारना पसंद करता है...आज उसी तमिलनाडु राज्य की महा महीम पर सारे इष्ट जनों की निगाहें हैं...मैडम कह चुकी हैं..पहले डेढ़ सौ से ऊपर नंबर लाओ, फिर ही न हम मेरिट देंगे आपको..अब बेचारे नमो(अपने नरेंद्र मोदीजी) सोच रहे होंगे की इस बायडी को कैसे संभाला जाये? गुजरात तो संभल गया लेकिन ये...

जो आदमी मर चुके थे,मौजूद हैं इस सभा में,

हर एक सच कल्पना से आगे निकलने लगा है

मुझे दो लोग बड़े अभिभूत करते हैं हमारी राजनीति में..एक तो हैं शिबू सोरेन और दूजे तेलंगाना वाले इनको पूरे पांच साल कोई नहीं पूछता लेकिन पांच साल की समाप्ति के साथ ही इनका सूर्योदय/भाग्योदय एक साथ हुआ जाता है!!...अभी चन्द्र बाबू का सारा अच्छा काम किया धरा रह जाएगा यदि तेलंगाना वालों का साथ नही मिला!

ये घोषणा हो चुकी है, मेला लगेगा यहाँ पर,

हर आदमी घर पहुँच कर, कपडे बदलने लगा है

मायावती जी ने तो कमाल ही कर दिया...जिस समाज..मनुवादी समाज के प्रति वो आग उगलती थी,उसी को रिझाने में उन्होंने कोई कसर नही छोड़ी!!उधर एन सी पी के पवार जी और संगमा जी खंडन मंडन में लगे हैं कि पवार जी को प्रधानमंत्री कैंडिडेट बनाया जाए या नहीं!! अरे ये गन्ने चूसने का काम है क्या?? वोही करना है तो बारामती भली!!

बातें बहुत हो रही हैं,मेरे-तुम्हारे विषय में,

जो रास्ते में खड़ा था पर्वत पिघलने लगा है

काश की आज बातें होती हमारी आपकी...इस देश की जनता की, आने वाले दिनों में हमारे बच्चों के भविष्य की...लेकिन खेद है,खेद है की ये सारी उठा-पठक फिर वही कुछ करेगी...देश की जनता के करोडों रुपयों का नुकसान...आनेवाले सालों में संसद उतना ही खाली दिखा करेगा जितना की गोविंदा की फिल्मों का थिएटर हॉल,फिर नलों में पानी नही आएगा..फिर घर से बाहर काम करने वाली स्त्रियों की सुरक्षा चीन्ह चीन्ह होगी और घरेलु शोषण में पत्निया पीसती नज़र आएँगी..आपको यकीन नही? मुझे तो है ..क्यूंकि ये सारे नेता और पार्टीयाँ एक ही गीत गा रहे दिखते हैं..लेफ्ट लेग आगे आगे, राईट लेग पीछे पीछे ..यारा ये क्या बात है...वो बंदा ही क्या है जो नाचे न गाये...आ हाथों में तू हाथ थाम ले...हो ओ .. डांस पे चांस मार ले!! ओ सोनिये...डांस पे चांस मार ले!

बस जी अब तो चांस ही की बात है!!

Wednesday, March 18, 2009

Origin of 'OM'

I chanced upon this great piece of knowledge sometime ago, sharing with you all how the word OM got originated---

When Viswamitra was taking Rama and Lakshmana for the purpose of killing Thataki, half way in their journey they heard a big noise. Rama and Lakshmana asked Viswamitra how in a forest where there were not many people, such a big noise could come. Viswamitra told them that in the Himalayas there is a particular mountain called the Kailasha and on that mountain there is a lake by name manasa sarovara. The river sarovara flows out of the Manasasarowar. An ancient king who belonged to the dynasty of Rama was responsible for bringing this river down to the plains and his name was Bhagiratha. Viswamitra stated that Bhagiratha brought down the river Ganges. As the river Sarayu was joining the river Ganges nearby the noise was so loud. Viswamitra had implied a good inner spiritual meaning for his statement. He regarded the word Kailasha as symbolic of the pure mind. Our mind has been compared to the lake manasasarovara.

The outflow of several ideas from the pure and clean mind had been compared with the outflow of the river Sarayu from the lake Manasasarovara. He imagined that these ideas are springing as if they had pure white foam in them. When these sacred ideas are emanating from Manasasarovara in the form of Sarayu and when they are touched by the rays of sun, they produce a Sound the primordial sound OM. This sacred sound Om, or the pranava is emanating from the heart of every individual. Viswamitra explained that this is the origin of the noise. You can hear this sound of pranava only in a place which is pure.

The nectar in the story of Rama is as the 'Sarayu river' that moves silently by the city of Ayodhya, where Rama was born and where he ruled. The Sarayu has its source in the Himalayan Manasa-Sarovar, as this Story is born in the Manasa-Sarovar (the Lake of the Mind)! The Rama stream bears the sweetness of Karuna; the stream of Lakshmana (his brother and devoted companion) has the sweetness of Devotion (Bhakthi); as the Sarayu river joins the Ganga (Ganges) and the waters commingle, so too, the streams of tender compassion and devotion (the stories of Rama and Lakshmana) commingle in the Ramayana. Karuna and Prema make up, between them, the composite picture of the glory of Rama; that picture fulfils the heart's dearest yearning for every Indian; to attain it is the aim of every spiritual striving.
On the right bank of the river Ghaghra or Saryu, as it is called within sacred precincts, stands the holy city of Ayodhya, believed to be the birth place of Lord Rama, the seventh incarnation of Lord Vishnu. The ancient city of Ayodhya, according to the Ramayana, was founded by Manu, the law-giver of the Hindus. For centuries it was the capital of the decendants of the Surya Vansh of which Lord Rama was the most celebrated king. Ayodhya during ancient times was known as Kosaldesha. The Atharvaveda describes it as "a city built by gods and being as prosperous as paradise itself". The illustrious ruling dynasty of this region were the lkshvakus of the Surya Vash. Accoridng to tradition lkshvaku was the eldest son of Vaivasvata Manu, who established himself at Ayodhya. The earth is said to have derived its name 'Prithvi' from Prithu, the 6th king of the line. A few generations later came Masndhatri, in whose line the 31st king was Harishchandra, known idely for him live for truith. Raja Sagar of the same clan performed the ashvamedha yajna and his great grandson bhagirath is reputed to have brought ganga on earth by virtue of his penances. later in the time came the great raghu after whome the family came to be called as raghu vansh . His grandson was Raja Dasharatha the illustrious father of lord rama with whome the glory of the dynasty reached its zenith. According to pauranic belief in the 93rd generation from Ikshvaku the 30th from lord rama was vrihadbala the last famous king of the ikshvaku dynasty of ayodhya who was killed during the Mahabharata war. The kingdom of kosala again rose to prominence in the time of the Buddha, i.e. 6th century B.C.

Tuesday, March 3, 2009

संक्रांति फिर आ गयी. ..




This is something which i wrote on Sankranti day..14th Jan 2009. A festival so close to heart!




संक्रांति फिर आ गयी...सूर्यदेव का धनु राशिः से मकर राशिः में प्रवेश बड़ा शुभ माना जाता है क्योंकि सूर्य अब उत्तर की ओर जाता है..आने वाले छह महीनों के लिए! और इसी कारण इस दिन सूर्य की पूजा भी होती है..गायत्री मन्त्र का जाप होता है..
पुराण कहते हैं की इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाता है जो मकर राशिः का स्वामी है वैसे तो इन पिता-पुत्र के मध्य बिलकुल नहीं पटती किन्तु इस रोज़ सूर्य देव ये तय करके जाते हैं की आज शनि के घर जरुर जाना है और वह शनि के घर पूरा एक महिना वास करते हैं...ये दिवस पिता पुत्र के मध्य सामंजस्य का भी है..पुत्र को पिता के स्वप्नों/आदर्शों को पूर्ण करने का आवाहन देने वाला दिन भी...
तात्पर्य ये की मकर सक्रांति आवाहन देता है की पुराने अंधेरों से निकल कर नए उजालों की ओर बढे चलो...शुभ दिवस आये हैं...उनका आशीर्वाद ले तुम पतंग की तरह आकाश में उडे चलो...जीवन से मन से,ह्रदय से, दुष्कर्मों की,दू:विचारों की बातों रूपी पतंग को काट डालो...पुरानी कड़वी बातों को भूल (तीळ-गुळ घ्या,गोड़-गोड़ बोला) अर्थात- तिल - गुड़ खाओ और मीठा मीठा बोलो - (तिल, जो काली मिट्टी का,उपजाऊ भूमि का प्रतीक है एवं गुड़ जो जीवन में मिठास का भाव देता है/ इस वक़्त हमारे खेतों में नया तिल और गन्नों से रस निकाल नया गुड़ भी आता है..)

संक्रांति काल...क्या शहर क्या देश क्या विश्व.. इस वक़्त संक्रांति माने 'परिवर्तन' या 'ट्रांसिशन' से गुजर रहा है...अमेरिका ने इससे पूर्व पिछली सदी में दो ऐसे आर्थिक संक्रांति काल गुजारे हैं और जिसका खामियाजा बाकि के विश्व को अब तलक भुगतना पड़ा! इस दफा लेकिन चोट गहरी है..'कन्स्युमेरिज्म' की सताई अर्थ-प्रणाली, ओबामा की सरपरस्ती में नए आकाश तलाश रही है...और सभी को उनमें आकांक्षाओं का अनंत आकाश नज़र आ रहा है...ठीक सूर्य देव की तरह... की जो आकर 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' सा कुछ कर देंगे...

काश..काश की आनेवाले दिनों में सारी व्यवस्थाएं/प्रणालियाँ आदि सही हो जायें...काश की हिन्दुस्तान की सरज़मीन से भी कोई सूर्य देव रूपी ओबामा उठे और शनि प्रकोपित "सत्यम-राजू" जैसे पुत्रों को यथोचित,यथासमय ज्ञान देकर सीधा करे...देश वासियों के स्वप्नों को,छोटी छोटी इच्छाओं को पतंग सा बना कर उड़ना सिखाये...क्यूंकि...हमारे आकाओं से अब कुछ होने वाला नहीं...उनकी पतंग कट चुकी है...उनके अपने मांझे ने उनकी उंगलियाँ इस कदर छील कर लहू-लुहान कर दी हैं की उन्हें अपनी पगड़ी सँभालने में भी दिक्कत हो रही है..घर में घुस आये चूहों को पकड़ने के लिए जिस देश के सरताज सामने वाले के घर से चूहादानी उधार लेना चाहते हॉं, उनसे क्या उम्मीदें की जा सकती हैं-- राष्ट्रिय सुरक्षा की? आर्थिक सुरक्षा की? या की देश की उन्नति की सुरक्षा की? शायद किसी की भी नहीं...इसीलिए ...इसीलिए हे सूर्यदेव,आइये, आपका भारत की पावन भूमि पर स्वागत है! अपने भगीरथी प्रयास से ज्ञानियों को मेहनत का और मेहनतकशों को ज्ञान का वरदान दीजिये!

करोडों की संख्या में कल देशवासी गंगासागर पर/त्रिवेणी पर/हर की पौडी पर, आपको अर्घ्य देने आपके उदय के समय गायत्री का जाप करते खड़े होंगे...

हम सभी को इस संक्रांति काल से ख़ुशी-ख़ुशी उबार लेना प्रभु.... पुराने गिले-शिकवे कुछ हॉं तो भूल जाना प्रभु...
तीळ-गुळ घ्या,गोड़-गोड़ बोला!

Friday, February 13, 2009

~~अमृता प्रीतम~~एक दिन कवि आ गया,वह चीखकर कहने लगा ......

Dear All, something that I read yesterday in Kisi tarikh ko by Imroz...made me think aloud! You might have read it before, presenting once again..
"अंत में अमृता की अपने-आपसे हुई मुलाकात 'मैं और मैं' का आखिरी हिस्सा यहाँ जरुर दर्ज करना चाहता हूँ,जिसमें उसके व्यक्तित्व का एक खास पहलू -उसके मन की फकीरी -बड़ा उभरकर आया है|एक दर्द है की मैं सिर्फ एक शायर बन कर रह गयी-एक शायर,एक अदीब|
हजारीप्रसाद द्विवेदी के एक नाविल में एक राजकुमारी एक ऋषि-पुत्र को प्यार करती है और इस प्यार को वह छाती में जहां छिपाती है वहां किसी की दृष्टि नहीं जाती| पर एक बार उसकी सहेलियों-जैसी बहन उससे मिलने आती है,और वह इस प्यार की गंध पा जाती है|उस समय राजकुमारी उससे कहती है,"अरु!तुम कवि बन गयी हो,इसलिए सब कुछ गड़बड़ा गया...आदिकाल से तितली फूल के इर्द-गिर्द घुमती है,बेल पेड़ के गले लगती है,रात को खिलनेवाला कमल चांद की चांदनी के लिए व्याकुल होता है,बिजली बादलों से खेलती है पर यह सब कुछ सहज मन होता था,कभी कोई इनकी ओर उंगली नहीं उठाता था,न कोई इनके भेद को समझने का दावा करता था - की एक दिन कवि आ गया,वह चीखकर कहने लगा ,
"मैं इस चुप की भाषा समझता हूँ|सुनो-सुनो दुनियावालो|मैं आँखों की भाषा जनता हूँ,बांहों की बोली समझता हूँ,और जो कुछ भी लुका-छिपा है, मैं वह सब जानता हूं|". और उसी दिन से कुदरत का सारा पसारा गड़बड़ा गया...यह एक बहुत बड़ा सच है|कुछ बातें सचमुच ऐसी होती हैं,जिन्हें खामोशी की बोली नसीब होनी चाहिए....पर हम लोग,हम शायर,और अदीब उनको उस बोली में से निकालकर बाहर शोर में ले आते हैं...
जानते हो उस राजकुमारी ने फिर अपनी सखि से क्या कहा था?कहा-
"अरु!तुमने जो समझा है,उसे चुपचाप अपने पास रख लो|तुम कवि से बड़ी हो जाओ|"

मेरा यही दर्द है की मैं कवि से बड़ी नहीं हो सकी|जो भी मन की तहों में जिया,सब कागजों के हवाले कर दिया|"

~~~ किसी तारीख को में इमरोज़ ने अमृता की पुस्तक 'जंग जारी है' से प्रस्तुत किया है...मेरे ख्याल में अमृता प्रीतम के दर्द की यह इन्तेहा रही होगी~~~

मैं ही दरिया,मैं ही तूफां,मैं ही था हर मौज में.................

मैं ही दरिया,मैं ही तूफां,मैं ही था हर मौज में
में ही खुद को पी गया सदियों से प्यासा मैं ही था

{इब्राहीम अश्क}
I have been reading an amazing book on human bonding,love,hurt,sorrows,values,ambitions and that thing called as living life irrespective of the fallacies/mishaps in life- a stroy woven around four doting friends who were the cynosure of each other's life and studied together at an arts school in Paris.
The book is "Three weeks in Paris" by Brabara Taylor Bradford..amazing story teller! It's not Barbara alone, but I think it is the mere mention of Paris that fills my senses and I go weak in the knees just romancing along the Seine river side or enjoying cuppas of coffee on street side cafe`...or smelling lovely balmy wind in the gardens behind Chateaux...aah..am already there...just as Ibrahim ashk says above...."में ही खुद को पी गया सदियों से प्यासा में ही था.
Anya Sedgwick, the owner of the design institute in this fiction work is to celebrate her 85th birthday. She has ulterior motive of bringing back together the four friends who were bum-chums once upon a time but alas...were destined to part ways harshly just prior to graduation owing to misunderstandings.
 Anya....I feel, just like Ibrahim Ashk is saying..."I have been on this earth eighty-five years and I have lived every one of those years to the fullest,with energy,zest and enthusiasm. I have been involved,curious,caring,loving,interested in everything and everyone. I've never been bored or jaded,and my mind has always been active,alert,filled with optimism.She smiled inwardly...."
As I sat reading this today in my window...I thought ohh how clearly it echoes my own views for self..that for whatever number of years I live, it got to be always like this......and I smiled and softly murmured...
मैं ही दरिया,मैं ही तूफां,मैं ही था हर मौज में.................
And I know, my life will never be complete without reaching out on Eiffel Tower or enjoying the evenings along Champs-Elysees....       Aah Paris...some day I would definitely come to you to drink the nectar of thy beauty and till then would keep on repeating this by
Meer Fatah Ali:
वो सूरतें इलाही किस देस बस्तियां हैं
अब देखने को जिनके आंखें तरसतियां हैं

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