Thursday, March 20, 2014

~~'दृष्टान्त'~~

वह चक्रव्यूह भी बिखर गया
जिसमें घिरकर अभिमन्यु समझता था खुद को|
आक्रामक सारे चले गये
आक्रमण कहीं से नहीं हुआ
बस मैं ही दुर्निवार तम की चादर-जैसा
अपने निष्क्रिय जीवन के ऊपर फैला हूँ|
बस मैं ही एकाकी इस युद्ध-स्थल के बीच खड़ा हूँ|
यह अभिमन्यु न बन पाने का क्लेश!
यह उससे भी कहीं अधिक क्षत-विक्षत सब परिवेश!!
उस युद्ध-स्थल से भी ज्यादा भयप्रद....रौरव
मेरा ह्रदय प्रदेश!!!
इतिहासों में नहीं लिखा जायेगा|
ओ इस तम में छिपी हुई कौरब सेनाओं !
आओ! हर धोखे से मुझे लील लो,
मेरे जीवन को दृष्टान्त बनाओ;


नए महाभारत का व्यूह वरूँ मैं|
कुंठित शस्त्र भले हों हाथों में
लेकिन लड़ता हुआ मरूँ मैं|
~~'दृष्टान्त'~~ दुष्यंत कुमार~~

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